Gandhi Jayanti: राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा, 'रोने दो पकड़ वही छाती, जिसमें हमने गोली मारी'
संकल्प ठाकुर, एबीपी न्यूज़ | 01 Oct 2018 10:00 PM (IST)
Gandhi Jayanti: आज गांधी जयंती के मौके पर आपको बता रहे हैं रामधारी सिंह दिनकर की उन मशहूर कविताओं के बारे में जो उन्होंने महात्मा गांधी के लिए लिखीं.
नई दिल्ली: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर में एक समानता थी. दोनों के लिए देश किसी भौगोलिक संरचना से कहीं ज्यादा महत्व रखता था. दिनकर के लिए गांधी मानवता की सबसे बड़ी मिसाल थे. दिनकर ने गांधी के लिए कई कविताएं लिखी. वह महात्मा गांधी के विचारों से इतने प्रभावित थे कि 1947 में 'बापू' नामक उनकी काव्य संग्रह छपी जिसमें उन्होंने बापू को समर्पित चार कविताएं लिखीं थीं. शरीर से बेहद कमजोर एक व्यक्ति अपने अहिंसा के दम पर आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. उसकी ताकत को राष्ट्रकवि ने भी पहचाना और लिखा- तू चला, तो लोग कुछ चौंक पड़े, तूफान उठा या आंधी है ईसा की बोली रूह, अरे! यह तो बेचारा गांधी है. दिनकर का मानना था कि गांधी की तरह जीना बिल्कुल आसान नहीं. उन्हें कई तरह से परेशान किया जाता है. उन पर कई तरह के आरोप लगाए जाते हैं लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का कमाल है कि वह सत्य के मार्ग से कभी हटे नहीं. उन्होंने महात्मा गांधी के इसी खूबी को बयां करते हुए लिखा- ली जांच प्रेम ने बहुत, मगर बापू तू सदा खरा उतरा शूली पर से भी बार-बार, तू नूतन ज्योति भरा उतरा यह भी पढ़ें- GANDHI JAYANTI: महात्मा गांधी ने कहा था- जहां प्रेम है वहीं जीवन है, यहां हैं- बापू के पॉपुलर Quotes दिनकर ने अपनी कविताओं से गांधी के विचारों की तस्वीर बनाई. उनका मानना था कि एक अर्द्धनग्न आदमी बिना किसी हथियार के सिर्फ विचारों का लोहा ले रहा है. वह कितना साहसी है. एक कवि हमेशा भविष्य को लेकर सोचता है और दिनकर भी महात्मा गांधी के भविष्य को लेकर लगातार सोचते थे. उन्हें डर था कि कहीं उनके साथ कोई अनहोनी न हो जाए तभी उन्होंने लिखा- बापू जो हारे, हारेगा जगतीतल का सौभाग्य-क्षेम बापू जो हारे, हारेंगे श्रद्धा, मैत्री विश्वास प्रेम जिस बात का डर था वही हुआ, बापू की गोली मारकर हत्या कर दी गई. बापू की हत्या से दिनकर का क्रोध फूट पड़ा. उन्होंने लिखा- जल रही आग दुर्गन्ध लिये, छा रहा चतुर्दिक विकट धूम विष के मतवाले, कुटिल नाग निर्भय फण जोड़े रहे घूम द्वेषों का भीषण तिमिर-व्यूह पग-पग प्रहरी हैं अविश्वास है चमू सजी दानवता की खिलखिला रहा है सर्वनाश गांधी की हत्या को लेकर दिनकर का साफ मत था. राष्ट्रपिता के मृत्यु से दुखी कवि बेबाक होकर उनके हत्यारों के बारे में कहता है- कहने में जीभ सिहरती है मूर्च्छित हो जाती कलम हाय, हिन्दू ही था वह हत्यारा दिनकर बापू से बहुत प्यार करते थे. बापू के मौत के बाद उन्हें आत्मग्लानी हो रही थी. वह स्वयं को उनका हत्यारा मान रहे थे. उनका साफ मानना था कि बापू की हत्या एक 'घृणा की विचारधारा' रखने वाले संगठन ने की है. दुखी मन से दिनकर केवल इतना ही कह पाते हैं- लौटो, छूने दो एक बार फिर अपना चरण अभयकारी रोने दो पकड़ वही छाती, जिसमें हमने गोली मारी.